:!! ज्योतिष: वेद चक्षु: !!

!! ज्योतिष: वेद चक्षु :!!

( आस्ट्रोमोबी ज्योतिष केन्द्र)
मनुस्मृति -विवाह हेतु योग्य कन्या का चयन


विवाह के लिए योग्य कन्या का चयन सभी लोग करना चाहते हैं और करते भी हैं। कुछ लोग कन्या के कुल, गोत्र को महत्व देते हैं तो कुछ कुण्डली मिलान को। कुछ लोग कन्या के रूपरंग को महत्व देते हैं तो कुछ लोग यथेष्ट आय पाने वाली कन्या का चयन करते हैं। कुछ लोग कन्या की वेशभूषा, अद्यतन प्रचलन (अपटूडेट फैशन) को महत्व देते हैं तो कुछ कन्या के श्रेष्ठ संस्कारों को महत्व देते हैं। कुछ लोग वर-कन्या की मित्रता को मान्यता देकर ही विवाह कर लेते हैं तो कुछ परिजनों के संरक्षण में आयोजित विवाह (अरेंज्ड मैरिज) को मान्यता देते हैं।

मनुस्मृति में पुरुषों को विवाह योग्य कन्या के चयन हेतु मार्गदर्शन किया गया है।

यद्यपि हम जानते हैं कि मनुस्मृति के मानदण्डों को न कोई मानता है और न ही मानना चाहता है तथापि जिज्ञासु पाठकों के लिए यह कौतूहल से भरा विषय हो सकता है।

आज के समय में मनुस्मृति के मानदण्ड भले ही प्रचलन में नहीं हैं तो भी जिस प्रकार हम पुराने किले, भग्न मन्दिरों, नालन्दा जैसे विध्वंसित विश्वविद्यालयों के सम्बन्ध में जानना चाहते हैं, उसी रूप में ही (सही) मानो तो, हम मनुस्मृति के इन प्रावधानों को पाठकों के समक्ष रखना चाहते हैं।

आशा है जिज्ञासु पाठकों को कुछ लाभ तो होगा ही।

महान्त्यपि समृद्धानि गोजाविधनधान्यत:।
स्त्रीसम्बन्धे दशैतानि कुलानि परिवर्जयेत्।।
मनुस्मृति ३/६

गौ, बकरी, भेड़, धन और अन्न से अधिक समृद्ध व्यक्तियों को भी दस कुलों की स्त्रियों से विवाह सम्बन्ध नहीं करना चाहिए।

धन-धान्य से सम्पन्न और समर्थ व्यक्ति तो किसी भी कन्या से विवाह कर सकता है किन्तु महर्षि मनु का सुझाव है कि ऐसे व्यक्तियों को भी निम्न दस कुलों की कन्याओं से विवाह का परित्याग करना चाहिए।

हीनक्रिपं निष्पुरुषं निश्छन्दो रोमशार्शसम्।
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्चित्रिकुष्ठिकुलानि च।।
मनुस्मृति ३/७

ये दस कुल इस प्रकार हैं।
१. जातकर्म आदि संस्कार से हीन कुल में विवाह न करने के पीछे कारण, असंस्कारी कुल की कन्या भी असंस्कारी ही होगी ,ऐसी मान्यता है। 
२. जिस कुल में पुत्र उत्पन्न नहीं होता हो, केवल कन्या ही उत्पन्न होती हो। ऐसे कुल की कन्या के साथ विवाह करने से बहुत सम्भावना है कि वह कन्या भी कन्याओं को ही जन्म दे। पुत्र के जन्म की सम्भावनाएँ अत्यन्त क्षीण होतीं हैं।

पिता का वंश पुत्र से चलता है पुत्री से नहीं। इसलिए पिता का वंश चलाने के लिए पुत्र का जन्म होना आवश्यक है। पितृऋण से उऋण होने का यही एकमात्र उपाय है।
पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है इसका
कारण पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं, अपितु हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है।
यह बात पढ़-सुनकर बहुत से लोग अप्रसन्न हो सकते हैं परन्तु वैज्ञानिक तथ्य यही है कि पिता के विशेष गुणसूत्र से पुत्र का जन्म होता है।

यदि हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखें तो हम पाते हैं कि एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है और पुरुष में XY होते है।

इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है) तो उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नहीं है और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते है। पुत्री के इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है।

इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गाँठ सी रचना बना लेता है, जिसे Crossover कहा जाता है।

दूसरी ओर पुत्र में XY गुणसूत्र होता है। पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना सम्भव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है।

इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ क्योंकि Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिन्त हैं कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है।

लगता है कि इसी Y गुणसूत्र का पता लगाकर ही हमारे देश में गोत्र प्रणाली का प्रचलन किया गया है, जो लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।

३. जो वेदों के पठन-पाठन से हीन हो (अर्थात् अशिक्षित कुल)। वेद सब विद्याओं के स्रोत हैं इसलिए वेदज्ञान से रहित व्यक्ति अपढ़ ही माना जाएगा। ऐसे कुल से विवाह सम्बन्ध नहीं करना चाहिए।

आज के युग में वेदविद्या उस अर्थ में नहीं चल रही है जिस अर्थ में महर्षि मनु कहते हैं। यद्यपि आजकल जो भी ज्ञान है वह भी वेदों में निहित ज्ञान ही है।

४. जिस कुल के पुरुषों के शरीर में अधिक रोम हों। अधिक रोमावलि वाले पुरुष श्रेष्ठ नहीं माने जाते।
५. जिस कुल में अर्श (बवासीर), ६. राजयक्ष्मा (टी बी), ७. मन्दाग्नि (अपच का रोग), ८. मूर्छा (मिरगी), ९. श्वेत कुष्ठ, १०. गलित कुष्ठ रोग हों अथवा हुए हों। 

इन कुलों की कन्या से विवाह न करे।

नोद्वहेत्कपिलां कन्यां नाधिकाङ्गीं न रोगिणीम्।
नालोमिकां नातिलोमां न वाचाटां न पिङ्गलाम्।।
मनुस्मृति ३/८

कपिला वर्ण (लाल भूरे रंग) वाली, अधिक अङ्ग वाली, नित्य रोगिणी रहनेवाली, रोम से रहित, अधिक रोम वाली, वाचाल (अधिक बोलने वाली), भूरी आँखों वाली कन्या से विवाह न करे।

नर्क्षवृक्षनदीनाम्नीं नान्त्यपर्वतनामिकाम्।
न पक्ष्यहिप्रेष्यनाम्नीं न च भीषणनामिकाम्।।
मनुस्मृति ३/९

नक्षत्रों के नाम वाली (रोहिणी, मघा, कृतिका, रेवती जैसे नाम वाली), वृक्षों के नाम वाली (धवा, मौलश्री, कदली, कदम्ब इत्यादि वृक्षों के नाम वाली), नदी नाम वाली (गङ्गा, यमुना, नर्मदा गोदावरी इत्यादि नाम वाली), म्लेच्छ नाम वाली (चाण्डाली, श्वपची), पर्वत के नाम वाली (विन्ध्याचली, अरावली जैसे नाम वाली), पक्षियों के नाम वाली (कोकिला, सारिका, मैना, इत्यादि नाम वाली), सर्पों के नाम वाली (नागी, वासुकि जैसे नाम वाली), भीषण नाम वाली (भयंकरा, भीमा, डाकिनी जैसे नाम वाली) कन्या से विवाह न करे।

इसलिए प्रथम ही माता-पिता अपनी कन्या का नाम उपर्युक्त ढँग से न रखें।

कन्या का नाम रखने के सम्बन्ध में महर्षि मनु कहते हैं -

स्त्रीणां सुखोद्यमक्रूरं विस्पष्टार्थं मनोहरम्।
मङ्गल्यं दीर्घवर्णान्तमाशीर्वादाभिधानवत्।।
मनुस्मृति २/३३

स्त्रियों के नाम सुखपूर्वक उच्चारण करने योग्य, अक्रूर, स्पष्ट अर्थ वाला, मनोहर, मङ्गलसूचक, अन्त में दीर्घ स्वर वाला और आशीर्वाद से युक्त रखना चाहिए।

अव्यङ्गाङ्गीं सौम्यनाम्नीं हंसवारणगामिनीम्।
तनुलोमकेशदशनां मृद्वङ्गीमुद्वहेत्स्त्रियम्।।
मनुस्मृति ३/१०

जो किसी अङ्ग से हीन (कान, नाक, आँख से हीन, बहरी, कानी, लूली, लँगड़ी) न हो, सौम्य नाम वाली (जैसे चन्द्रानना, शकुन्तला, चन्द्रावलि इत्यादि), हंस तथा हाथी के समान चलने वाली (हंसगामिनी, गजगामिनी), सूक्ष्म (न्यून) रोम, पतले केश और पतले दाँतों वाली, और मृदु शरीर (सुकुमार) वाली हो, ऐसी कन्या से विवाह करे।

यस्यास्ति न भवेद्भ्राता न विज्ञायेत वा पिता।
नोपयच्छेत मां प्राज्ञ: पुत्रिकाधर्मशङ्कया।।
मनुस्मृति ३/११

जिस कन्या का भाई न हो और जिस कन्या को अपने माता-पिता का ज्ञान न हो उस कन्या के साथ पुत्रिकाधर्म की शंका से विद्वान् पुरुष विवाह न करे।

✍️Astrologer K.C.Pandey
( Founder)
ASTROMOBY JYOTISH KENDRA
www.Astromoby.com
pa.kailash.vns@gmail.com
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9650202707

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